भारत में 2011की जनगणना के अनुसार 6,40,867 गांव हैं। गाँव महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे देश के लिए कृषि उत्पादन का प्राथमिक क्षेत्र है । #गाँव भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह पर्यावरण के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में भी प्रमुख भूमिका निभाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या वृध्दि दर कम होने के बावजूद देश की करीब 68 प्रतिशत यानी 83 करोड़ 30 लाख की आबादी गांवों में रहती है।
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#भारत विविधताओं का देश है, जहां की अनूठी #संस्कृति, परंपराएं, खान-पान और वेशभूषा इसे अन्य देशों से अलग बनाती हैं। हमारे देश को गांवों का देश भी कहा जाता है। यही वजह है की असली भारत की पहचान गांवों से होती है। वहीं, जब बात होती है देशभक्ति और जज्बे की, तो गांव के लोग भी पीछे नहीं हटते हैं।
भारत एक #कृषिप्रधानदेश है। प्राचीन काल से ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि ही रहा है । कृषि पर हमारी निर्भरता के साथ ही यह भी तथ्य हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि देश की सत्तर-प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती है । किसी कवि ने सत्य ही लिखा है – ” है अपना हिंदुस्तान कहाँ, यह बसा हमारे गाँवों में । ”
अत: भारतवर्ष के महत्व का वास्तविक मूल्यांकन यहाँ के गाँवों से ही संभव है । उन्हें किसी भी दृष्टिकोण से पृथक् नहीं किया जा सकता है । प्राचीन काल में ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाला हमारा देश धन-धान्य से परिपूर्ण था परंतु विदेशियों के निरंतर आक्रमण तथा इसके पश्चात् अंग्रेजों का आधिपत्य होने के उपरांत भारतीय गाँवों की दशा अत्यंत दयनीय व सभी के लिए चिंता का विषय बन गई ।
#भारतीयगाँव समय के साथ बेरोजगारी, अज्ञानता तथा पिछड़ेपन का पर्याय बनकर रह गए ।भारतीय गाँवों की दयनीय व जर्जर अवस्था के अनेक कारण हैं । इतिहास की ओर यदि हम दृष्टि डालें तो हम देखते हैं कि मुगलों के आक्रमण के पश्चात् जब देश में अंग्रेजों का आधिपत्य हुआ, तब गाँवों की दशा अत्यंत चिंतनीय थी ।
इसका प्रमुख कारण था कि अंग्रेजों ने कभी भी भारत को आत्मसात् नहीं किया । उनका दृष्टिकोण सदैव भारत के प्रति व्यावसायिक ही रहा जिसके फलस्वरूप यहाँ के कुटीर उद्योग तथा कृषि व्यवस्था का ह्रास होता रहा । अंग्रेजों के साथ-साथ जमींदारों व सेठ-साहूकारों के निरंतर शोषण ने भी ग्रामीणों को उबरने का कभी अवसर प्रदान नहीं किया ।
देश के गाँवों में रहने वाले अधिकांश लोग आज भी रूढ़िवादिता तथा अंधविश्वासों से ग्रसित हैं । पुरानी परंपराओं तथा सामाजिक बंधनों ने उन्हें इस प्रकार जकड़ रखा है कि वे स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच दशकों के बाद भी विकास की प्रमुख धारा से स्वयं को पृथक् किए हुए हैं ।
जातिवाद, भाषावाद जैसी विषमताएँ आज भी उतनी ही प्रबल हैं जितनी वह पहले हुआ करती थीं । झूठी शान-शौकत अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा हेतु कुछ लोग सामर्थ्य से अधिक कर्ज ले लेते हैं जिसे वे जीवन पर्यंत चुकाने में असमर्थ रहते हैं ।
गाँवों के लोग अभी भी कई प्रकार की ऐसी समस्याओं से जुड़े हैं जिनका समाधान थोड़े से सामूहिक प्रयासों से संभव है । गाँवों में ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधनों के प्रयोग की काफी संभावनाएँ हैं परंतु गाँवों की निरंतर उपेक्षा के कारण लोग अभी तक उपले जलाकर खाना पका रहे हैं ।
विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने अपार सफलता अर्जित की है जिसके फलस्वरूप दुनिया सिमटती हुई प्रतीत होती है । विकास की इस दौड़ में भारतीय गाँव भी अब अछूते नहीं रहे हैं । हमारी सरकार भी ग्रामीण विकास के लिए निरंतर प्रयास कर रही है ।
आज दूर-दराज के गाँवों को भी बिजली-पानी आदि सभी जरूरत की चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं । दूरदर्शन व अन्य संचार माध्यमों के द्वारा ग्रामीण लोगों को उत्तम कृषि, स्वास्थ्य व उत्तम रहन-सहन संबंधी जानकारी दी जा रही है ।
गाँवों को सड़क तथा रेलमार्गों द्वारा शहरों से जोड़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है । गाँवों के विकास हेतु सरकार द्वारा अनेक परियोजनाएँ समय-समय पर प्रस्तुत की गई हैं। इनमें पंचायती राज व्यवस्था भी प्रमुख है जिससे ग्रामीण दशा में काफी सुधार हुआ है । सरकार, ग्रामीणजनों तथा समस्त भारतीय नागरिकों का सामूहिक प्रयास अवश्य ही रंग लाएगा और हमारे भारतीय गाँव आदर्श गाँव बन सकेंगे ।
भारत के 28 राज्यों में मार्च 2023 तक जिलों की संख्या बढ़कर 752 तक हो गई है, जबकि 8 केंद्र शासित प्रदेशों में जिलों की संख्या बढ़कर 45 तक हुई है। यानि इन दोनों को मिला दिया जाए, तो भारत में कुल 797 जिले हैं।
यदि हम यहाँ गाँव के जीवन एवं शहर के जीवन की बात करें तो दोनों में काफी अंतर होता है, जोकि इस प्रकार हैं –
ग्रामीण जीवन बिना सुख सुविधाओं एवं संसाधनों के बीच व्यतीत होता है, जबकि शहरी जीवन सुख सुविधाओं एवं संसाधनों से भरपूर होता है.
ग्रामीण जीवन में गरीबी अधिक होता है लोग कृषि एवं छोटे उद्योगों पर निर्भर होते हैं जिसके कारण उनकी आमदनी भी सीमित होती है, किन्तु शहरी जीवन में बड़े बड़े उद्योग होते हैं जिसके कारण वहां पर आमदनी भी ज्यादा होती है.
ग्रामीण जीवन में भले ही सुख सुविधाएँ कम हो लेकिन यहाँ पर जीवन बहुत ही खुशहाल एवं आरामदायक होता है, जबकि शहरी जीवन में सुख सुविधाएँ होने की बावजूद भी यहाँ के लोगों की दिनचर्या आरामदायक नहीं वे हैं वे पूरे समय भागते रहते हैं.
ग्रामीण जीवन में शिक्षा की सुविधाएँ भी कम हैं लेकिन शहरी क्षेत्र में यह सुविधाएँ बेहतर होती हैं जिसके कारण वहां के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल जाती है.
ग्रामीण क्षेत्र में सुविधाएँ कम होनी की वजह से वहां पर समस्याएं भी अधिक आती है, लेकिन शहरों में समस्याएं कम होती हैं. गाँव के लोग खुद खेती करते है, गाय भैस पालते है, तो वे अपने लिये बिना रसायन का उपयोग किए अनाज, सब्ज़ी आदि का प्रबंध कर सकते है। जहाँ हम लोग शहरों में पैकेट का दूध इस्तेमाल करते है, वहीं गाँवो में लोग गाय भैसों का शुध्द और ताजा दूध पिते है तथा घर पर ही दूध के अन्य पदार्थ बनाते है।
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