पृथ्वी का घूर्णन अक्ष अपने कक्षीय समतल के सापेक्ष झुका हुआ है। यही ऋतुओं का कारण बनता है। जब पृथ्वी का अक्ष सूर्य की ओर इंगित करता है, तो उस गोलार्ध के लिए ग्रीष्म ऋतु होती है। जब पृथ्वी की धुरी दूर की ओर इशारा करती है, तो सर्दी की उम्मीद की जा सकती है।
क्रांतिवृत्तीय तल के साथ पृथ्वी के अक्षीय झुकाव तथा पृथ्वी की वार्षिक गति (अपनी कक्षा मंे सूर्य का परिक्रमण) के कारण भूमध्य रेखा के संदर्भ में सूर्य की स्थितियाँ (उत्तरायण और दक्षिणायन) बदलती रहती हैं जिससे विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली सूर्यातप की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है जिससे जलवायु दशाओं में अन्तर आता है। इस प्रकार एक वर्ष में कई ऋतुएं होती हैं जो पृथ्वी की वार्षिक गति के साथ बदलती रहती हैं। इसे ऋतु परिवर्तन या मौसम परिवर्तन कहते हैं।
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21 मार्च (बसंत विषुव) को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत चमकता है और सम्पूर्ण विश्व में रात-दिन बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होती है। इसके पश्चात् सूर्य उत्तरायण हो जाता है और 21 जून (ग्रीष्म संक्रांति) को कर्क रेखा पर लम्बवत होता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में अधिकतम सूर्यातप मिलता है और ग्रीष्म ऋतु होती है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में अल्पतम सूर्यातप प्राप्त होने के कारण शीत ऋतु होती है। इसके पश्चात् सूर्य की स्थिति पुनः दक्षिण की ओर होने लगती है और 23 सितम्बर (शरद विषुव) को पुनः सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् होता है और सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में पतझड़ ऋतु होती है। सितम्बर से सूर्य दक्षिणायन होने लगता है और 22 दिसम्बर (शीत संक्रांति) को मकर रेखा पर लम्बवत् होता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में अल्पतम सूर्यातप प्राप्त होता है और यहाँ शीत ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिकतम सूर्यातप की प्राप्ति के कारण ग्रीष्म ऋतु होती है। इस प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध में विपरीत ऋतुएं पायी जाती हैं।
अब इसमें कई तरह के कारक अपना अपना योगदान देते हुए असर डालते हैं. पृथ्वी (Earth) सटीक गोलाकार नहीं है. उसका अक्ष (Axis) पृथ्वी सूर्य के तल की तुलना में 23.5 डिग्री झुका हुआ है. इसकी वजह से से भूमध्य रेखा (Equator) पर तो पृथ्वी की किरणें सीधी पड़ती है. लेकिन ध्रुवों पर तिरछी पड़ती हैं. लेकिन इतना ही नहीं एक ध्रुव दूसरे के तुलना में सूर्य की तरफ ज्यादा हो जाता है और सूर्य की ओर ध्रुव वाले गोलार्द्ध को सूर्य की रोशनी ज्यादा मिलती है. और उस हिस्से में वह समय गर्मीका मौसम होता है. वहीं जो ध्रुवा सूर्य से दूर झुकता है, पृथ्वी के उस गोलार्द्ध को कम रोशनी मिलती है वहां सर्दी का मौसम होता है।
ध्रुवों (Poles) पर गर्मियों में 24 घंटे दिन रहता है सर्दियों में कभी सूर्योदय ही नहीं होता. वहीं भूमध्य रेखा Equator) के पास साल भर दिन की लंबाई या तापमान में बदलाव देखने को नहीं मिलता है. इसी तरह उष्णकटिबंधीय इलाकों और उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों के लोगों के मौसम (Weather) के बारे में अलग अलग विचार होते हैं. किसी जगह का मौसम इस पर ज्यादा निर्भर होता है कि वह क्षेत्र सूर्य का प्रकाशकितना अवशोषित कर पा रहा है और कितनी कितनी ऊर्जा उत्सर्जित कर पा रहा है. इसी से तय होता है कि सतह कितनी गर्म या ठंडी रहेगी. इसके अलावा पानी के मुकाबले धरती जल्दी ठंडी गर्म होती है इसलिए तटीय इलाकों की तुलना में अंदरूनी महाद्वीपों में मौसम में काफी अंतर मिलता है।
सर्दियों (Winter) के मौसम उत्तर की ओर जाने पर सूर्य की रोशनी (Sunlight) और ज्यादा तिरछी होती चली जाती है. इससे ऊष्मा उत्सर्जित (Heat Emission) करने की तुलना में सूर्य प्रकाश कम मिलता है जिससे ठंड ज्यादा पड़ती है. ऐसा जमीनी इलाकों में ज्यादा होता है. इसीलिए इस मौसम में उत्तर के पहाड़ी इलाकों से ठंडी हवा मैदानी इलाकों फैल कर उन्हें भी ठंडा करती है. लेकिन पानी से आती हवाएं सम तापमान की होती हैं. इसीलिए तटीय शहरों में उतनी ठंडक नहीं होती।
एक और कारक यह भी है कि पृथ्वी (Earth) की सूर्य (Sun) से दूरी हमेशा समान नहीं होती. जनवरी के मौसम में पृथ्वी सूर्य से सबसे ज्यादा दूर होती है जिससे जनवरी ज्यादा ठंडी होती है. फिर भी एक बड़ा अंतर और है. जहां दक्षिणी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) के हिस्से में उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में जमीन बहुत कम है और पानी ज्यादा है. यही वजह है कि दक्षिणी गोलार्द्ध में मौसम और तापमान चरम पर कम दिखाई देते हैं. इसीलिए वहां ज्यादा भीषण गर्मी या ज्यादा तेज ठंड नहीं पड़ती है. जिससे लेकिन जनवरी में उत्तरी गोलार्द्ध में ऐसी ठंड पड़ती है जो दक्षिण में भी देखने को नहीं मिलती है. इसके अलावा स्थानीय जलवायु भी मौसम में स्थानीय स्तर पर भिन्नता ला देती है।
मौसम का अर्थ है किसी स्थान विशेष पर, किसी विशेष समय में वायुमंडल की स्थिति। यहाँ 'स्थिति' की परिभाषा को हमें व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझना होगा।
मौसम में अनेक कारकों यथा-वायु का ताप, दाब, उसके चलने की गति और दिशा तथा बादल, कोहरा, वर्षा, हिमपात आदि की मौजूदगी और उनकी परस्पर अंतःक्रियाएँ शामिल होती हैं। ये अंतःक्रियाएँ ही मुख्यतः किसी स्थान के मौसम का निर्धारण करती हैं।
किसी स्थान पर होने वाली इन अंतःक्रियाओं का लंबे समय तक अध्ययन करके जो निष्कर्ष निकाला जाता है, उसे उस स्थान की जलवायु कहते हैं।
मौसम रोज़ बदल सकता है, बल्कि एक दिन में ही कई बार बदल सकता है, लेकिन जलवायु आसानी से नहीं बदलती। किसी स्थान की जलवायु बदलने में सैकड़ों, हज़ारों या लाखों वर्षों का समय भी लग सकता है।
इसीलिये हम ‘बदलते मौसम’ की बात करते हैं, ‘बदलती हुई जलवायु’ की नहीं।
पृथ्वी की आकृति अण्डाकार है। घुमाव के कारण, पृथ्वी भौगोलिक अक्ष में चिपटा हुआ और भूमध्य रेखा के आसपास उभार लिया हुआ प्रतीत होता है।
Watch video पृथ्वी पर मौसम क्यों बदलते है। आइए हम देखते है पृथ्वी का पूरे एक साल का जीवन चक्र।—Hindi Information online without registration, duration hours minute second in high quality. This video was added by user Taj Agro Products 23 November 2022, don't forget to share it with your friends and acquaintances, it has been viewed on our site 75,06 once and liked it 2.9 thousand people.